वंदे मातरम केवल गीत नहीं, आत्मा है राष्ट्र की : डॉ रागिनी विस सत्र में रागिनी सोनकर ने सरकार को दी नसीहत

 वंदे मातरम केवल गीत नहीं, आत्मा है राष्ट्र की : डॉ रागिनी

विस सत्र में  रागिनी सोनकर ने सरकार को दी नसीहत

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वाचस्पति इंडिया न्यूज़
हरिकृष्ण गुप्ता लखनऊ


 
लखनऊ/ जौनपुर | उत्तर प्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान सोमवार को सदन में वंदे मातरम विषय पर दिया गया डॉ. रागनी सोनकर का भाषण राष्ट्रभक्ति, सांस्कृतिक चेतना और ऐतिहासिक स्मृतियों से परिपूर्ण रहा। उनके भावनात्मक एवं विचारोत्तेजक वक्तव्य ने सदन के वातावरण को देशप्रेम से ओत-प्रोत कर दिया।

डॉ. रागिनी सोनकर ने कहा कि वंदे मातरम केवल एक गीत नहीं, बल्कि भारत माता की आराधना, स्वतंत्रता संग्राम की चेतना और राष्ट्रीय स्वाभिमान का प्रतीक है। उन्होंने बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित इस अमर गीत की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए बताया कि किस प्रकार इसने आज़ादी की लड़ाई में देशवासियों को एकजुट करने का कार्य किया।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जब क्रांतिकारी कठिन से कठिन परिस्थितियों से गुजर रहे थे, तब वंदे मातरम का उद्घोष उनके लिए साहस, त्याग और बलिदान की प्रेरणा बना। यह गीत उस कालखंड में केवल शब्द नहीं था, बल्कि संकल्प और संघर्ष की आवाज़ था।
डॉ. सोनकर ने कहा कि वर्तमान समय में वंदे मातरम का भाव और भी अधिक प्रासंगिक हो गया है। उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे इस गीत के मूल भाव—देशप्रेम, कर्तव्यनिष्ठा और सामाजिक एकता—को अपने जीवन में उतारें। उन्होंने शिक्षा, चिकित्सा, प्रशासन और विज्ञान जैसे क्षेत्रों में कार्यरत युवाओं का उदाहरण देते हुए कहा कि जब व्यक्तिगत सफलता राष्ट्रहित से जुड़ती है, तभी सशक्त भारत का निर्माण होता है। उन्होंने सरकार को नसीहत देते हुए कहा कि  क्या सरकार वंदे मातरम् के इन शब्दों को समझती है? इनकी मान और मर्यादा को समझती है। वंदे मातरम् का अर्थ है वंदना मां की..भारत मां की वंदना. किसी भी मां की वंदना उसके बच्चों को दुख पहुंचा के और उसके बच्चों के साथ अत्याचार करके कभी नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि हम इस देश में आई लव कृष्णा, आई लव जीसस, आई लव वाहे गुरु कह सकते हैं लेकिन इस प्रदेश में आई लव मोहम्मद कहने पर बच्चों के गिरफ्तार कर लिया जा रहा है क्या यही है वंदे मातरम्?
इस अवसर पर सदन में उपस्थित सदस्यों ने उनके वक्तव्य को गंभीरता और सम्मान के साथ सुना। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही दलों के विधायकों ने भाषण की सराहना की और इसे शीतकालीन सत्र का एक प्रेरक क्षण बताया।
डॉ. रागिनी सोनकर का यह संबोधन केवल एक औपचारिक भाषण नहीं, बल्कि राष्ट्रीय चेतना को सुदृढ़ करने वाला संदेश था, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनेगा।

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