"एक गज़ल"
हर तरफ से आ रहीं हैं आँधियाँ!
पाँव को छलने लगीं बैसाखियाँ!
ज़िन्दगी की कोई कीमत है नहीं,
और मंहगी हो रहीं हैं रोटियाँ!
फर्ज पूरा कर दिया है इसलिए,
अब कभी आती नहीं हैं हिचकियां!
जितनी ज़्यादा कीमती मुस्कान है
उतनी मंहगी भी नहीं हैं साड़ियाँ।
जैसे उसने कान में हाँ जी कहा
जून में भी आ गईं थीं सर्दियाँ।
सच के रस्ते पर अगर चलना पड़े
तोड़ दो गर पाँव में हों बेड़ियाँ।
एक होटल फिर बना है आपका,
याद है? पहले वहाँ थीं बस्तियाँ!
इस तरह से घूरते हो क्यूँ इन्हे,
आप के घर में नहीं है बेटियाँ?
झूठ कहने से नहीं कुछ जायेगा,
सच कहोगे तो गिरेंगी बिजलियाँ!
आप खारिज हैं बहर से चुप रहें,
हम कहेंगे तो बजेंगी तालियाँ!
*अभिषेक बाजपेयी*
सीतापुर , उत्तर प्रदेश
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नाम - अभिषेक बाजपेयी
जन्म तिथि - 03-08-1998
पिता - स्वर्गीय देवशर्मा बाजपेयी
माता - श्रीमती रेखा बाजपेयी
शिक्षा - स्नातक
लेखन विधा- छन्द, कविता गीत, गज़ल
भाषा - हिंदी, उर्दू, अवधी, बृजभाषा
प्रकाशित पुस्तक - "शुभारम्भ" (वर्ष 2022)
सम्मान- देश के अनेक मंचों पर काव्यपाठ।
दूरदर्शन लखनऊ के कार्यक्रम में प्रतिभाग।
अनेक टीवी चैनलों पर कविता वाचन।
राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में नियमित रचनाओं का प्रकाशन।

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