एक उम्मीद, एक प्यारी सी कविता

वाचस्पति इंडिया न्यूज़ 

संजय पांडेय सरस आजमगढ

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 एक उम्मीद

मां के आंचल से बिछड़ कर ,

पापा के कंधे से उतरकर ,

एक नई दुनिया में कदम रखा है, 

जहां उनका प्यार तो है मगर एहसास नहीं, 

वो दूर है मगर पास भी ,

उनकी आशाएं पेटी में साथ लेकर चली हूं, 

उनकी हिम्मत बनकर डटकर खड़ी हूं ,

एक उम्मीद तो मेरी भी है ,

जो आंसू आज याद में बह रहे हैं, 

जो आंखें आज यह सोचकर नम है, 

कल उन आंखों में चमक होगी , एक नई रोशनी एक तरंग होगी, हर एक बूंद का हिसाब होगा ,

जब उनका गुरुर मेरा नाम होगा |




ईशानी पांडे ,काली चौराहा ,आजमगढ़ 

बीएससीएलएलबी ,प्रथम वर्ष

यूपीएसआईएफएस ,लखनऊ

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